आप अपनी कविता में निहित छंद और लय का विश्लेष्ण और सरलता पूर्वक कर सकें इसके लिए गीत गतिरूप अब और सरल प्रतिरूप बनाता है। इससे मात्राओं का संयोजन और स्पष्ट उभरता है।
उदाहरण स्वरूप, विनोद तिवारी कृत “प्यार का नाता” की कुछ पंक्तियाँ देखें —
ज़िन्दगी के मोड़ पर यह
प्यार का नाता हमारा।
राह की वीरानियों को
मिल गया आखिर सहारा।

प्रतिरूप में अक्षरों को छिपा दें और पंक्तियाँ सटाएँ, तो संयोजन और भी स्पष्ट हो जाता है।

जब कुल मात्राएँ बहर / छन्द के अनुकूल हो पर लय के अनुकूल पंक्तिओं में संयोजन और सुधारना चाहें, तो यह प्रतिरूप से त्रुटि की जगह देखने में और सुविधा होती है।
ग़ज़ल में रदीफ़ काफ़िया अभी भी देख सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, ग़ालिब के कुछ शेर
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मुऐयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

कविता में स्वर, व्यंजन से ही तुक बनता है। स्वर, व्यंजन के संयोजन का अलंकार से गहरा रिश्ता है। इस सब से कविता के कुल सौन्दर्य पर प्रभाव पड़ता है। आगे हम कोशिश करेंगे कि स्वर, व्यंजन को पुन: प्रतिरूप में किसी तरह से दिखाएँ मगर फिर भी प्रतिरूप द्वारा विश्लेष्ण सरल ही रहे। इसके लिए कुछ शोध, अध्ययन, मनन की आवश्यकता होगी।
अभी तो आशा है कि इस बदलाव से आपके लिए अपनी कविता में निहित छंद और लय का विश्लेषण सरल होगा।