“आज यूनिफॉर्म आयरन नहीं हो सका? कोई बात नहीं। तुम यहाँ खड़ी हो जाओ सीता। कपड़े ढक जाएँगे, पर चहरा स्पष्ट नज़र आएगा। राधिका तुम मॉनिटर हो, सामने की पंक्ति मे आ जाओ। लम्बी हो इसलिए तुम्हे बैठना होगा।”
क्लास फोटो के पहले सारे बच्चों के लिए ठीक ठीक जगह तय करना बड़ा पेचीदा काम है। अक्सर कविता की एक पंक्ति मे भी कौन से शब्द कहाँ रखे जाएं, यह संयोजन या तो पंक्ति को सरसता प्रदान करती है, या एक चुभते कंकड़ का आभास छोड़ जाती है। छन्द मात्रा सही हो, वही चार-पाँच शब्द, पर किसे कौन सी कुर्सी मिले जिससे कि पंक्ति कानों को सहला जाए – यह तय करने में शब्दों में फेर बदल करना जरूरी होता है। इस आधी अधूरी रचना में एक पंक्ति ने ऐसे ही मुझे तंग किया, एक छोटे से अस्पष्ट कंकड़ का आभास होता रहा –
दु:ख के आँचल का लहराना
यह भी मन का अटल नियम है।
ऐसे मत हो –
दिन तो भाए पर, रात ढले ना सहन करो।
अपने हथियार रख दो सारे
पोषण लेकर आई रात,
कुछ पल यह भी ग्रहण करो।
वह कष्टदायक पंक्ति थी
अपने हथियार रख दो सारे
बहुत देर तक समझ में नहीं आया, पढ़ने में कहाँ अड़चन आ रही है। फिर दिखा – “हथियार” का र और “रख” का र मिल रहें हैं और पढ़ने में दोनों शब्द का स्पष्ट उच्चारण नहीं हो पा रहा है।
तो दूसरी बार पंक्ति यह बनी,
अपने हथियार सारे रख दो
अब “हथियार” और “रख” अलग अलग हो गए, पढ़ते वक्त कानों को कुछ राहत मिली, पर अब “सारे” और “रख” पास पास थे – रे और र। र और र से तो यह बेहतर था फिर भी पढ़ते वक्त जीभ पूरी तरह से खुश नहीं थी।
फिर काव्य की देवी ने तीसरा रूप धरा
रख दो अपने हथियार सारे
इस संयोजन में कुछ तो आकर्षक है – पढ़ते वक्त स्वत: ही हथियार के “या” पर ज़ोर पड़ रहा है जिससे कि शायद अभिव्यक्ति कुछ सशक्त हुई है। अब पंक्ति को अपने पड़ोसियों के संग पढ़ते हैं –
दिन तो भाए पर, रात ढले ना सहन करो।
रख दो अपने हथियार सारे
पोषण लेकर आई रात,
फिर कुछ खटक रहा है। बात यह है कि हमारी पंक्ति में 2 2 मात्रा के संयोजन में हथियार का र बेचारा चिपट गया है।
यहाँ दो बातें महत्वपूर्ण हैं –
- जब विषम मात्राओं की पंक्ति हो, जैसे 15, 17, 19 – तो आखरी अक्षर अकेले एक मात्रा का बचे तो बेहतर है। यहाँ 17 मात्रा की पंक्ति का अन्त 2 मात्रा से हो रहा है – “सारे” के “रे” से।
- पंक्ति के बीच में विषम मात्रा के शब्द को जितनी शीघ्रता से पास के शब्द से एक मात्रा मिल जाए, उतना बेहतर है – जिससे कि विषम सम हो सके। जैसे कि “प्यार नहीं” और “नहीं प्यार” के बीच “प्यार नहीं” में ज्यादा लय है।
तो इस तरह से आखिरकार पंक्ति ने रूप लिया –
रख दो अपने सारे हथियार
अगली पंक्ति के संग देखें तो
रख दो अपने सारे हथियार
पोषण लेकर आई रात
अब हथियार का यार और रात दोनों 2+1 से समाप्त हो रहे हैं तो कानों को कुछ और सुकून मिल रहा है – और रचना ने यह रूप लिया
दु:ख के आँचल का लहराना
यह भी मन का अटल नियम है।
ऐसे मत हो –
दिन तो भाए पर, रात ढले ना सहन करो।
रख दो अपने सारे हथियार –
पोषण लेकर आई रात,
कुछ पल यह भी ग्रहण करो।
इस लेख में मात्राओं के चित्र गीत गतिरूप के सहयोग से बनाए गए हैं। गीत गतिरूप एक सॉफ़्टवेयर है जो काव्य-शिल्प संवारने में कवि की मदद करता है। कविता में शब्द संयोजन के आपके अनुभव और विचार भी हमारे संग नीचे कमेन्ट्स में साझा करें।
उत्तम शब्द संयोजन । अपने आदर्श की रक्षा में कविता को कठिन साधना करनी पड़ती है और इस साधना में शिल्पगत सृष्टि एक विशेष रूप रचना होती है, इस विशिष्टता में ही रसोद्रेक की शक्ति निहित होती है । जब हम गति लय और शिल्प को ध्यान में रख कर संवेदनात्मक धरातल को आधार मान रचना करते हैं तो वह सहज संप्रेषणीय और रस निष्पत्ति की मनोहारी अभिव्यंजना से युक्त हो जाती है । आपका कविता के प्रति समर्पण सराहनीय है । साधुवाद आपको ।
कान्ति शुक्ला
वाह बहुत अच्छा लगा नये लेखकों के लिए बहुत अच्छी जानकारी है
Excellent write up . ये दिल माँगे मोर !
Regards