गीत गतिरूप में एक और वृद्धि — अब कविता में तुकांत पंक्तियों के तुक वाले अक्षर अलग रंग में उभर कर आएँगे।
उदाहरण स्वरूप देखिए विख्यात कविता, केदारनाथ अग्रवाल की रचना “बसंती हवा” की कुछ पंक्तियाँ —

हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी –
अनोखी हवा हूँ।
बड़ी बावली हूँ,
बड़ी मस्तमौला।
नहीं कुछ फिकर है,
बड़ी ही निडर हूँ।
जिधर चाहती हूँ,
उधर घूमती हूँ,
मुसाफिर अजब हूँ।
छन्द-मुक्त कविता में भी तुकांत पंक्तियाँ अलग से उभर कर आएँगी। छन्द-मुक्त कविता में भी लय और तुक की उपस्थिति से कविता और प्रभावकारी हो जाती है।
उदाहरण स्वरूप देखिए विनोद तिवारी की कविता “जीवन दीप” की कुछ पंक्तियाँ —

यह विशाल ब्रह्मांड
यहाँ मैं लघु हूँ
लेकिन हीन नहीं हूँ।
मैं पदार्थ हूँ
ऊर्जा का भौतिकीकरण हूँ।
नश्वर हूँ,
पर क्षीण नहीं हूँ।
मैं हूँ अपना अहम
शक्ति का अमिट स्रोत, जो
न्यूटन के सिद्धान्त सरीखा
परम सत्य है,
सुन्दर है, शिव है शाश्वत है।
मेरा यह विश्वास निरन्तर
मेरे मानस में पलता है।
मेरा एक दीप जलता है।
आशा है इस वृद्धि से आपको अपनी कविता का आकार सुगठित करने के लिए और प्रेरणा मिलेगी। गीत गतिरूप में आप अपनी कविता का प्रतिरूप तो देख ही सकते हैं, अन्य कुशल कवियों की कविता भी डाल कर प्रतिरूप देख सकते हैं। इससे हमारे सीखने समझने में बहुत वृद्धि होती है।
तो आपकी या किसी अन्य कवि की कविता पर इस नई सुविधा का असर देखने आईये गीत गतिरूप में। कुछ भी प्रश्न, सुझाव, अथवा टिप्पणी हो तो ज़रूर लिखें।
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