नाप कर माप कर! (मापनी)

कई दिनों से (बल्कि सालों से) मन में यह बात थी कि गीत गतिरूप में यह सुविधा होनी चाहिए| छंद की मापनी देकर उसके अनुसार कविता का प्रतिरूप पाने की सुविधा। एक बार मैंने कोशिश भी की, पर कोड करना जटिल लगा। मैंने छोड़ दिया।

हाल में कवि और गीत गतिरूप के प्रयोगी ( यूज़र), धीरेन्द्र त्रिपाठी ने कुछ सुझाव दिए जिससे कि यह महत्वपूर्ण सुविधा कोड करना काफ़ी सरल हो गया, और अब यह आपके लिए तैयार है।

काव्यशास्त्र और संगीत में सक्रिय रुचि रखने वाले धीरेन्द्र त्रिपाठी “कालपाठी” के नाम से लिखते हैं। विभिन्न छंदों की उनकी कविताएँ, यहाँ, उनके वेबसाइट पर, छंद की जानकारी सहित संकलित है। साथ ही व्यवसाय से वह प्रौद्योगिकी के सलाहकार भी हैं, तो उनकी ओर से यह सुझाव आए, आश्चर्य नहीं। इसके लिए उन्हें बहुत धन्यवाद।

कालपाठी की ही कविता “एक लघु जीव से…” की दो पंक्तियों के माध्यम से मापनी की यह सुविधा को जानें —

कविता के टेक्स्ट के पहले, प्रथम पंकित में अब आप छंद की मापनी लिख सकते हैं,
जैसे कि मंदाक्रांता छंद की मापनी
2222 111112 2122122
और उसके बाद कविता की पंक्तियाँ, जैसे कि
तेरी मेरी विविध विधि है जीव संतोष की रे
दोनों तो हैं सुविकसित है दौड़ता कौन धीरे

(कालपाठी)


और प्रतिरूप देखें तो यह पाएँगे —


यदि पंक्तियाँ मापनी के अनुकूल नहीं हैं तो प्रतिरूप में दिख जाएगा, जैसे कि —
2222 111112 2122122
आने जाने में लगता है समय बहुत ही रे


इस उदाहरण में कुल मात्रा एक से कम पड़ रहा है (27 की जगह 26) वह तो दिख ही रहा है, साथ ही रंगों के कारण छंद से पृथक पहली त्रुटि कहाँ है, और आगे के बेमेल भी स्पष्ट हो रहे हैं।


मापनी आप हिन्दी के १ २ में भी दे सकते हैं —
२२२२ १११११२ २१२२१२२

मापनी यदि न भी दें तो अब दीर्घ मात्रा और दो लगातार लघु मात्रा हरे में दिखते हैं और अकेला लघु हो तो नीले में। इससे बिन मापनी के भी छंद का आकार ज्यादा स्पष्ट होता है। इसके कारण तुकान्त पंक्तियों के रंग देखना अब अतिरिक्त विकल्पों में डाल दिया गया है —


सॉफ़्टवेयर अभी यति (छंद में विराम कहाँ अनिवार्य है) नहीं दिखाता है। वह प्रबन्ध और उसकी घोषणा बाद में कभी।

इस सुविधा के विषय में कोई भी प्रश्न अथवा टिप्पणी हो तो नीचे अवश्य लिखें।

4 thoughts on “नाप कर माप कर! (मापनी)”

  1. वाणीजी,

    वेबसाइट में नयी उपलब्धि के लिए बधाई!

    और आपके लेख जिसमें मेरा, मेरी वेबसाइट का और मेरी कविताओं का उल्लेख है, उसके लिए धन्यवाद।

    मेरा सुझाव तो केवल एक छोटा सा संकेत था और सारा श्रेय आपकी कला समर्पित सोच और मेहनत को जाता है।

    मैं यहाँ आपको इस सराहनीय वेबसाइट के लिए भी बधाई देना चाहता हूँ जो पारम्परिक कलाओं को आधुनिक प्रौद्योगिकी से जोड़ कर, उन कलाओं को और प्रचलित होने में सहायता प्रदान कर रही है।

    सादर।

    – धीरेन्द्र त्रिपाठी

      1. लगता है मुझसे पढ़ने में भूल हुई और मैं ये समझ बैठा कि हम रचना डालेंगे और सॉफ्टवेयर उसका मापनी के अनुसार माप बता देगा। वस्तुतः सहायता केवल इतनी है कि यह इच्छित मापनी से तुलना कर देता है। नए लिखने वालों की असल समस्या तो यही है कि वो इच्छित माप की सही पहचान कैसे करें, खास तौर पर ग़ज़ल में जहां मात्रा गिराए जाने का प्रावधान भी है।

        1. कई स्पैम में खो गया था, इसलिए पहले नहीं दिखा। इसके लिए क्षमा चाहती हूँ।

          सॉफ्टवेयर पंक्तियों का माप भी बताता है और मापनी के अनुसार तुलना भी करता है। पर संशोधन की आवश्यकता है वहाँ क्या संशोधन करें जिससे कि पंक्ति ठीक बैठ जाए — यह सॉफ़्टवेयर नहीं बता सकता। यह कवि की सृजन शक्ति पर निरभर है। शब्द सम्पदा नामक सुविधा से कुछ मदद मिल सकती है।

          आपने ग़ज़ल की बात अच्छी कही, जहाँ मात्रा गिराने का प्रावधान है। इसके लिए मात्राओं के परिवर्तन की सुविधा है। इस वीडियो में खास दुष्यन्त कुमार की एक ग़ज़ल के ज़रिए यह दर्शाया गया है। शायद इसके विषय में आप पहले से ही जानते हैं। हाँ मात्रा कहाँ गिराना है, यह सॉफ़्टवेयर नहीं बताता — यह आपके उच्चारण पर निर्भर है।

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