सात घोड़ों पर सवार सपना

धर्मवीर भारती की एक मुक्त छंद कविता है जो मुझे बहुत पसन्द है। एक निहित लय का भी एहसास होता है। किन्तु लय की बात बाद में, पहले कविता का आनन्द लें —

क्योंकि

…… क्योंकि सपना है अभी भी –
इसलिए तलवार टूटे, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशायें,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल,
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
…… क्योंकि है सपना अभी भी!

तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा,
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा,
विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा)
किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
है धधकती आग में तपना अभी भी
…… क्योंकि सपना है अभी भी!

तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
यह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो
और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर याद आता है कि
सब कुछ खो गया है – दिशाएँ, पहचान, कुंडल-कवच
लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी

इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल,
कोहरे डूबी दिशाएँ,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
…… क्योंकि सपना है अभी भी!

~ धर्मवीर भारती

कैसी लगी कविता? अति-सशक्त है न? एक निहित लय का एहसास हुआ?

मैंने इसे गीत गतिरूप में डाल कर देखा तो पाया कि सात मात्राओं की लय पर बह रही है यह कविता। पता नहीं क्यों, पर कविता मेरे लिए और भी सुन्दर हो गई। देखिए इस चित्र में — लगभग हर पंक्ति 7 मात्राओं का कोई गुणज है (14, 21, 28 इत्यादि)। कुछ पंक्तियों को जोड़ने से उनकी संख्या 7 का गुणज बनती है। और यह सब उच्चारण में कोई फेर बदल के बिना। सच, लय कविता का अनिवार्य गुण है।

3 thoughts on “सात घोड़ों पर सवार सपना”

  1. मैं जो अपनी लाइने लिखता हूँ उसमें अगर त्रुटि होती है तो यहाँ अब सुधार पाऊंगा।

  2. इस में विभन्न रंगो के अक्षर क्या दर्शाते हैं , रंगों का अर्थ क्या है ।

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