अजीब मानूस अजनबी था…

गये दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो
– नासिर क़ाज़मी ( http://swatisani.net/asad/ से )

अभी पढ़ा यह शेर। एक उतार चढ़ाव है इसकी पंक्तियों में जो मुझे मोहक लगीं। तो मैंने इसे गीत गतिरूप में डाल कर देखा –

33 मात्राओं की पंक्तियाँ मिली, 16+17 की जोड़ी में, जो अक्सर देखने को नहीं मिलती। और ऊपर नीचे के अक्षर कहीं एक दूसरे को काटते नहीं। ए-कार अक्सर ग़ज़ल में छोटा उच्चारण किया जाता है – मगर उसकी भी यहाँ कहीं आवश्यकता नहीं। वैसे उर्दू ग़ज़ल के मापदण्ड शायद कुछ और हैं (मात्रा नहीं) और 33 33 होने से ही मोहक उतार चढ़ाव नहीं होता – पंक्ति के अन्दर की शिल्प की भी बात है।

शेर का संदेश तो मोहक है ही!

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