लड़कियां किस लय पर थिरकती हैं – कविता छंद विश्लेषण

हाल ही में काव्यालय पर सुदर्शन शर्मा की कविता लड़कियाँ प्रकाशित हुई। कविता पढ़ कर मुझे एक लय का एहसास हुआ। जबकि यह स्पष्ट है कि यह छंदोबद्ध कविता नहीं है और होना भी नहीं चाह रही है …

हाल ही में काव्यालय पर सुदर्शन शर्मा की कविता लड़कियाँ प्रकाशित हुई। कविता पढ़ कर मुझे एक लय का एहसास हुआ।

आपने अगर नहीं पढ़ी है कविता तो पहले उसका रस ले लें, फिर आगे बात करते हैं| अगर पढ़ी है, तो सीधे यहाँ मुद्दे पर आइये|

लड़कियाँ

कहाँ चली जाती हैं
हँसती खिलखिलाती
चहकती महकती
कभी चंचल नदिया
तो कभी ठहरे तालाब सी लड़कियाँ

क्यों चुप हो जाती हैं
गज़ल सी कहती
नग़मों में बहती
सीधे दिल में उतरती
आदाब सी लड़कियाँ

क्यों उदास हो जाती हैं
सपनों को बुनती
खुशियों को चुनती
आज में अपने कल को ढूंढती
बेताब सी लड़कियाँ

कल दिखी थी, आज नहीं दिखती
पंख तो खोले थे, परवाज़ नहीं दिखती
कहाँ भेज दी जाती हैं
उड़ने को आतुर
सुरख़ाब सी लड़कियाँ

– सुदर्शन शर्मा


कविता के ढांचे में कुछ बातें तो स्पष्ट हैं, जो लय का एहसास देती हैं –

  • पाँच पंक्तियों का हर छंद
  • हर छंद में पहली पंक्ति एक दुखद प्रश्न उठाती है, कि एक सुन्दर सा चित्र कहाँ खो गया
  • बाकि की चार पंक्ति वह सुन्दर चित्र खींचती हैं (जो खो गया)
  • हर छंद “आब सी लड़कियाँ” पर खतम होता है

इसके आगे भी एक लय का एहसास होता है, जबकि यह स्पष्ट है कि यह छंदोबद्ध कविता नहीं है और होना भी नहीं चाह रही है। यह कौतुहल हुआ कि गीत-गतिरूप में देखें इस रचना को| यह लय का एहसास कहाँ से आ रहा है, कुछ और पता चलता है क्या।

तो कविता को गीत-गतिरूप में डालने से यह मिला

इससे कुछ लय बोध तो हो नहीं रहा| हर पंक्ति जितने मात्रा की है उसमें कुछ ठोस समानता नहीं दिख रही है| 12, 17, 10, 23 सभी प्रकार के अंक हैं| (गौर करें दाहिनी ओर के अंकों पर)

तो फिर पंक्तियों को जोड़ हर छंद में कुल मात्रा कितने हैं, वह देखते हैं –

अभी भी काफी असमानता है – 65, 56, 64, 76 | फिर भी 56, 64 में यह समानता है कि वह दोनों 8 के गुणज हैं (multiples of 8)| तो क्या रचना का मूल बहर 8 है?

चलिए मूल बहर के बॉक्स में 8 देकर देखते हैं –

मूल बहर के अनुसार पहले छंद में 1 मात्रा ज़्यादा है और चौथे छंद में 4 मात्रा ज़्यादा है|

यह बहुत ख़ास बात नहीं – उच्चारण में अक्सर हम कुछ दीर्घ स्वर लघु करके कहते हैं| जैसे, “तो कभी ठहरे तालाब सी लडकियां” को “तो कभी ठहरे तालाब सि लडकियां” उच्चारण करना काफी आम है| तो उस “सी” को एक मात्रा करने से छंद मूल बहर में बैठ जाता है|
(“सी” पर मैंने क्लिक किया तो वह सिकुड़ कर एक मात्रा का हो गया| जब जुड़ी हुई पंक्तियाँ मूल बहर के अनुकूल होती है तो अंक लाल में नहीं होता)

उसी प्रकार से आख़री छंद पढ़ते वक्त अपने उच्चारण पर गौर करती हूँ तो लगता है –
“पंख तो खोले थे परवाज़ नहीं दिखती” में “तो” स्वाभाविकता से छोटा उच्चारण कर रही हूँ|
वैसे ही “उड़ने को आतुर” में “को” छोटा उच्चारण कर रही हूँ| आख़री पंक्ति में फिर “सुरखाब सी लडकियां” में सी मैं सि उच्चारण कर रही हूँ|

तो कुल मिला कर आख़री छंद यूं बैठा –

एक मात्रा अभी भी ज़्यादा| पर कुछ तो स्पष्ट हुआ कि छन्दोबद्ध कविता नहीं है फिर भी लय का एहसास कहाँ से आ रहा है| शायद इस रचना को “कहारवा” ताल के किसी धुन में ढाला जा सकता है|

आपका क्या विचार है? क्या आप इस विश्लेष्ण से सहमत हैं, या रचना में निहित लय को क्या किसी और तरह से देखना चाहिए? किसी शब्द को या पंक्ति को क्या किसी और प्रकार से देखा जा सकता है? नीचे ज़रूर टिपण्णी दें जिससे कि हम सभी सीख पाएं|

4 thoughts on “लड़कियां किस लय पर थिरकती हैं – कविता छंद विश्लेषण”

  1. इंसान के हर काम में एक लय होती है.. ध्यान से देखें तो हमारा उठाना -बैठना चलना बोलना खाना हर क्रिया में एक लय होती है .ये प्राकृतिक है . बस उसी पृवृत्ति का पालन करते हुए हमारी सोच भी जब शब्दों में ढलती है तो उसमे एक लय आ जाती है . किसी विशेष लय या मात्त्राओं से मुक्त होते हुए भी कविता स्वयं ही एक प्रवाह में बंध जाती है . इसीलिए कुछ कवि इसे छंद-मुक्त नहीं मुक्त छंद कविता कहते हैं .

    मुक्त छंद रचना का विश्लेषण करने से हम केवल यह जान सकते हैं कि हमारी कल्पना कहाँ सिकुड़ती है और कहाँ विस्तार लेती है ठीक वैसे ही जैसे एक नदी——- कभी कोई सहायक नदी उसमे मिलकर उसे विस्तार देती है , और कभी वो शाखा नदियों में बंटकर अपना अकार समेट लेती है

    इस रचना में यदि हम देखें तो अंतिम छंद में सबसे अधिक मात्राएँ हैं. तथा पहले तीन छंद प्रश्न से शुरू होते हैं लेकिन अंतिम छंद प्रश्न पर समाप्त होता है. यानी धीरे धीरे हमारी सोच ने विस्तार लिया और चिंतन में एक गहराई उतर आई . पहले तीन छंद लड़कियों को अनेक विशेषण देते हुए कुछ प्रश्न उठते हैं किन्तु अंतिम छंद का प्रश्न अपने आप में एक उत्तर भी है.. कहाँ भेज दी जाती हैं सुरखाब सी लडकियां. यानि सबकुछ होते हुए भी यदि लडकियां अपने सपने सच नहीं कर पातीं उसके लिए कोई है जो ज़िम्मेदार है… जैसे की समाज और परिवार, संकीर्ण विचार और कुरीतियाँ ??? चिंतन को इसी एक निष्कर्ष तक पहुँचाने के लिए सोच विस्तार लेती है और शब्द तथा मात्राएँ बढ़ जाती हैं. रचना कितनी भी छंदों से मुक्त हो विचारों की लय से मुक्त नहीं हो सकती

    धन्यवाद
    अंजु वर्मा

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